
26/11/2008 के ताज होटल हमले को हुए आज 11 साल हुए हैं पर उस समय जो लोग इसके आतंक को टेलीविज़न पर लाइव देख रहे थे उनके मन से आज भी वह दहशत नही भुलाई गयी है | जब पूरा देश यह कामना कर रहा था के इस त्रासदी से सरकारी तंत्र जल्दी से निपटे। देश की मीडिया इतनी आक्रामक नहीं थी के जाने माने नेता की खाल उधेड़ सकती और न ही उस समय कोई सोशल नेटवर्क साइट्स को इतनी तेहरीज थी जिसमे हमारे सोशल नेटवर्किंग वीर अपने स्टेटस से देशभक्ति की लड़ाई लड़ सकते ।
उस समय था तो सिर्फ एक ही चीज़ का इंतज़ार के कब पुलिस का काम खत्म होगा और कब एनएसजी के कमांडोज़ अपना लोहा मनवाकर देश की आंतरिक सुरक्षा भेद कर आये जिहादी आतंकवादियों को रौंद देगी। जब एनएसजी आयी तो हमले से बचने-बचाने के दौरान शहादतें भी हुई। ऐसी ही एक शहादत उत्तराखंड के देहरादून से एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह बिष्ट की भी थी जो आज भी नही भुलाई जा सकीय है ।

नरीमन हाउस में हुए इस हमले को ब्लैक टोर्नेडो ऑपरेशन के नाम से आज भी जाना जाता है जिसमें हवालदार गजेंद्र सिंह बिष्ट जैसे कितने ही पुलिसवालों और जवानों ने अपनी शहादत दी और देश को एक खतरनाक आतंकवादी हमले से बचाया जो आज भी भारत की इतिहास में एक काले दिन की तरह याद किया जाता है | गजेंद्र सिंह बिष्ट ने अपना जीवन देहरादून में नया गांव में शुरुआती दौर में शुरुआती दौर में गुजारा उनके दोस्तों के अनुसार वह शुरू से ही खेलकूद प्रतियोगिताओं में हमेशा आगे रहते थे | 26/11 हमले के समय उन्हें एनएसजी सदस्य टीम का मुखिया बनाया गया था, जो ताज होटल के अंदर सीधे हमला करने वाले थे |
ऑफिशियल डाक्यूमेंट्स बताते हैं कि उन पर आतंकवादियों ने लगातार फायरिंग की जिससे उनके दल को जवाबी फायरिंग करने में परेशानी हुई | अशोक चक्र विजेता कमांडो ने अपनी सूझबूझ से बाकी कमांडो टीम के लिए रास्ता इजात किया और खुद ग्रनेड की चपेट में आ कर शहीद हो गए। एक रिपोर्ट के द्वारा सरकार ने यह भी कहा के कुछ कथित मीडिया चैनल द्वारा एनएसजी कमांडो टीम की लाइव क्लिप दिखाने से भी आतंकवादी भाप गए थे की भारतीय आर्मी का अगला कदम क्या होने वाला था।
हवलदार गजेंद्र सिंह बिष्ट को मरणोपरांत 2009 के गणतंत्र दिवस में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। उस वक्त २०१९ के समान्तर बालाकोट जैसी जवाबी कारवाही करने पर देश एक मत था पर आज सोशल मीडिया जैसे हथियार आने से सरकारी तंत्रो पर दबाव बनाना और अपनी बात खुल कर रखना आसान हो गया है।

उत्तराखंड के पहाड़ आज भी देश के लिए जान न्योछावर करने में पीछे नही हैं, भले ही वो पुलवामा में हमले के बाद का दौर हो या पुर्वोत्तर में सीमा संभालते जवान। अशोक चक्र हवलदार गजेंद्र सिंह बिष्ट जैसे वीर नायक ही पहाड़ के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनके निकलते हैं।