
मार्च २०, २०१९ , को वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स का डाटा संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित किआ गया. डाटा द्वारा निकाले गए निष्कर्ष काफी रोचक और हैरान करने वाले रहे | डाटा ने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने परिणामो को प्रतिबिंबित किया है | जहाँ एक ओर स्वीडन, फ़िनलैंड और डेनमार्क जैसे राष्ट्र हैप्पीनेस इंडेक्स की रेस में अव्वल रहे वही भारत की रैंकिंग १५० में से १३३ स्थान पर रही | आश्चर्यजनक बात यह रही, जब आतंकवादग्रस्त देश, पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत से अच्छी रैंकिंग में रहे |
इन रुझानों से कई मीडिया हाउस और ब्लोग्स ने अपने निष्कर्षों में पाया की भारतीय लोग अपनी दिनचर्या से दुखी हैं | चूँकि, संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स एक मापदंड है जो सब देशों मे हो रहे विकासकार्यों पे केंद्रित है , यह कहना के राष्ट्र अवसादग्रस्त है, ना ही डाटा में हुई बायसिंग का प्रतीक है बल्कि इसके अलंकाँ के अल्गोरिथम में भी गड़बड़ी है | असल में डाटा नोर्मलिसिंग अथवा डाटा अवेरजिंग, सांख्यिकीय के दो ऐसे अंश है जो हमेशा विवाद का विषय रहा है. सं युक्त राष्ट्र हमेशा अपने बिग डाटा की नोर्मलिसिंग और अवेरजिंग करता है, जिस माध्यम से उन्हें न सिर्फ अलंकन आसान पड़ती है पर सारे देशोंको एक मापदंड एम् तोलने की सुहूलियत मिलती है | संयुक्त राष्ट्र ने यह काम और यह कार्यप्रणाली अपने सतत विकास लक्ष्यों को भी निष्कर्षित करने में प्रयोग की है | इस रिपोर्ट को जो पैरामीटर्स पर तोला गया है, वो ज्यादातर मानव अधिकार और आर्थिकी विषयो के है, जैसे आर्थिक जीडीपी, फ्रीडम ऑफ़ मेकिंग चोइसस (अपनी पसंदगी की आजादी होना) , जीवन प्रत्याशा, उदारता और भ्रष्टाचार |

भारत न ही सिर्फ जन प्रभुत्व राष्ट्र की संरचना है, बल्कि यहाँ वैश्विक धर्मो के भी बहुसम्प्रदाय हैं, इसमें हर एक व्यक्ति दुसरे की सोच से कुछ अलग है और उसे पसंदगी की आजादी होना कठिन हो जाता है | ऐसी मनोस्तिथि एक क्वासि-स्थैतिक घटना से परिवर्तित हो सकती है, जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है की अपनी पसंदगी की ज़िन्दगी जीना भारत में नए बन रहे सम्प्रदायों (जैसे LGBT और ट्रांसजेंडर) के लिए एक मुश्किल है पर भारतीय समुदाय इनकी तरफ भी उदारता दिखाना शुरू कर रहा है | ट्रांसजेंडर समाज अब ना सिर्फ मधु बाई किन्नर की तरह शहरों के मेयर बन रहे हैं बल्कि ये एंट्रेप्रेनुएरशिप में भी राह ढूढ़ रहे हैं |
भारत में मजहबो और धर्मो के बीच तनाव भी कम नहीं है, मंदिर- मस्जिद -गुरूद्वारे, राजनीतीक तनाव पैदा करते हैं | इसका प्रमुख कारण संस्थानों का प्रोपगंडाग्रस्त हो जाना है, मंदिर का ट्रस्ट, मस्जिदों का बोर्ड राजनीती में फसें है , अब उन्हें पैसे और वोट बैंक पॉलिटिक्स के अलावा कुछ याद भी नहीं है | और इसके आसार अभी कम होने के नज़र नहीं आते, ये आपको नज़र २०१९ के लोकसभा चुनावों की रैलियों में नज़र आ ही गया होगा |
जहाँ तक जीवन प्रत्याशा की बात है, आयुष्मान भारत इस लक्षय को प्राप्त करने पहल है, बशर्ते यह हर शक्षम अस्पतालों में लागू किया जाये | भ्रष्टाचार को कम करने में भारत शशक्त हुआ है, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में साफ़ लगता है के, लोग अब भ्रष्ट तंत्र के खिलाफत करने लगे है | रिपोर्ट में इसका श्रेय भारत सरकार को सारी योजनाए बैंकिंग सिस्टम से ऑटोमेट करने के काम के लिए दी गयी है | इसका मतलब यह नहीं है शाशन से भ्रष्टाचारी हट चुके हैं, वो हर वक़्त फ़िराक में लगे रहते हैं के कैसे उन्नीस बीस की जाये | पाकिस्तान की जीडीपी ३०४९५ करोड़ अमेरिकी डॉलर होने क बाद भी ख़ुशी के मामले में उप्पर है, इससे पता चलता है के इस रिपोर्ट का अलंकाँ ज्यादातर ह्यूमन राइट्स के विषयों को देख कर किया गया है, क्योकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलंकाँ में साफ़ पता चलता है के इनके एक ही मजहब के मानने से और उसी से प्रेरित संविधान, फ्रीडम ऑफ़ मेकिंग चोइसस (अपनी पसंदगी की आजादी होना) , उदारता में एकाधिपत्य प्रतिबिंबित करता है |
भारत विकाशसील देशों की उस चरण में है, जहां आज से पांच साल बाद उसे सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना है | इसपे एक पीड़ी को असल में संघर्ष में काम करना पड़ेगा, मगर ये किसी भी तरह नहीं दर्शाता के भारतीयों को अवसादग्रस्त करने वाली कोई संकीर्ण सोच का शिकार होना पढ़ रहा है |