
शायर और शराब का रिश्ता अगर जानना हो तो ग़ालिब और मसूरी के मैकिनॉन एंड को. के मयखाने के बीच का रिश्ता सबसे उपयुक्त उद्धारण है | मिर्ज़ा ग़ालिब अपने पैसे बचाके, सर हेनरी बोहल और सर जॉन मैकिनॉन की बनायीं हुई व्हिस्कि चखने के लिए मेरठ छावनी में चले आते थे| मना जाता है के मैकिनॉन ब्रेवरीज नाम से मसूरी मे बनायीं गयी व्हिस्की ब्रितानिआ फ़ौज के लिए आया करती थी |

मुग़ल शाशकों को अंग्रेजी तौर तरीके से बनायीं गयी शराब की लत के कारण कुछ शराब अंग्रेजों द्वारशाही मुग़ल दरबार में भी भेजी जाती थी| दरबार में ही ग़ालिब ने यह शराब चखी थी, जिसको याद करके वह अक्सर बोला करते थे ” मसूरी की हवा मे ही नहीं, पानी में भी नशा है” | कुछ समय बाद देहरादून के सुप्रीडेन्डेन्ट ने मैकिनॉन के शराबखाने को बंद करवा दिया जो बाद में दोबारा १८५० में खोली गयी |

ग़ालिब द्वारा एक कहानी में लिखा गया हैं की उनकी शायरियों में मसूरी की “ओल्ड टॉम ” व्हिस्की की लचक भी शामिल है | वैसे भी ग़ालिब और शराब का रिश्ता उनकी नज़्म “ग़ालिब छूटी शराब ,मगर अब भी कभी- कभी, पीता हु अब्र रोज़ शबे महताब में” में साफ़ झलकता है |
ग़ालिब अपना २०१९ दिसम्बर में २२२वी जन्मदिवस मना रहे होंगे, बल्ली मारां के मोहल्ले में जिसने उर्दू की खूबसूरत बयानों को अल्फ़ाज़ दिए उसके शराब के इस लगाव को समझना काफी रोचक लगता है |