
शराब उत्तराखंड की सदियों से परेशानी रही है , अगर तथ्य देखें जाए तो, उत्तराखंड का गठन शराब मुक्त होने के लिए हुआ था | हज़ारो पहाड़ के लोगों ने उत्तरखंड राज्य आंदोलन में अपनी जवानियाँ लगा दी, एक ऐसे राज्य के सपने के लिए, जहाँ औरतें को अपने शराबी आदमी से प्रताड़ना न झेलनी पड़े | चूँकि पहाड़ी नारी का नारीत्व, शहरी नारियों के नारित्व से अलग प्रतीत होता है, इसलिए उत्तराखंड की नारी ने ही शराब माफिया के खिलाफ सत्तर के दशक में शराबविरोधी मुहीम छेड़ी जो विक्सित होकर चिपको और उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन में परिवर्तित हुआ | उन्नीस साल पहले जब उत्तराखंड राज्य गठन हुआ और भारतीय जनता पार्टी को राज्य का पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा की, पहाड़ के लोगों की आशाओं पर पानी भी राष्ट्रीय पार्टियां फेरेंगी| इन उन्नीस साल में राज्य सरकारों और शराब ने अपने रिश्ते काफी गूढ़ बना लिए हैं |कहने को तो उत्तराखण्ड एक देवभूमि है, जहाँ हर पहाड़ पे देवी देवताओ के मंदिर मिलते है | पर अब यह बात उलट गयी है , इन उन्नीस साल में उत्तराखंड की प्रगतिशील सरकार (भले कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी ) ने हर कोने पर शराब के ठेके उपलब्ध करवा कर अपने डबल इंजन को चला रही हैं, बीती सरकार से ज्यादा शराब के ठेके खोलने का रिकॉर्ड इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को गया है |
पहले ही उत्तराखंड एक तीव्र पलायन की अवस्था से जूझ रहा है, जहां के ज्यादातर पहाड़ी लोग नौकरी की तलाश में देहरादून और हल्द्वानी जैसे छेत्रों में आते हैं, और इनको शराब अपनी चंगुल में जकड़ लेती है| ज्यादातर लोग शराब को अवसाद की स्तिथि में ग्रहण कर रहे है, वो अवसाद जो शहरों की तनावपूर्ण दिनचर्या से पैदा होता है | यह एक पूंजीवादी कुचक्र है जिससे सरकारें लोगों की दारु की लत से पैसा बनाने की योजनाओं को आगे बढाती हैं इसे अंग्रेजी में लिकर टूरिज्म कहा गया है | लिकर टूरिज्म एक ऐसा डबल इंजन उत्तराखंड के माथे पे लगने जा रहा है, जिससे हमारी यही नहीं बल्कि आने पीढ़ियां भी भुगतेंगी | शराब का आदि बनाकर, लत पड़ने पे, बढ़ी हुई कीमत वसूल करना ही लिकर टूरिज्म का एक ऐसा हुकुम का इक्का जैसे चीन को चरस की लत्त लगाकर, अँगरेज़ों ने अचानक उन्हें आलसी और अकर्मण्य बना दिया था| कुछ ऐसे ही प्रकार के फार्मूले से कारपोरेशन कंपनियां चल पा रही हैं |

पहले आपके घर और मोहल्ले के सामने अंग्रेजी और देसी दारू की डुलने खोली जाएँगी और अनियंत्रित भीड़ उसका सेवन करके लत का शिकार होगी | फिर धीरे-धीरे शराब के दाम बढ़ाये जायेंगे, पर आदत सिस्टम द्वारा शराब की इतनी लगवा दी जाएगी के महँगी से महँगी शराब खरीदने पे शराब का लती हिचकिचायेगा नहीं | इसी सिद्धांत पर सरकार ने पूंजीवाद से ग्रस्त होकर एक और मोर्डर्न मॉडल बनाया गया है जिसमे शराब के ठेके से संलग्न एक “सरकारी कैंटीन” भी होगी | सुनने में अचम्भा लगता है पर उत्तराखंड सरकार शराबियों के साथ खड़ी है और इस राज्य सरकार का पूंजीवादी मॉडल ही पर्यटन और शराब पर टिका हुआ है |
बात यह नहीं है के यह क्रम सिर्फ त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के मॉडल में देखने को मिला, पिछली गयी हुई हरीश रावत सरकार का भी हाल कुछ ऐसा ही था, “डेनिस” प्रकरण से कौन नहीं वाकिफ है, पूर्व मुख्यमंत्री आज भी इस बात पे रास्ता काट लेते हैं |
जिस राज्य में पलायन पर निति, रोजगार पर निति और खेल कूद के क्षेत्र में नीति नहीं है वहां आजकल “शराब निति” चलती है | आधुनिक काल के चाणक्य बने हमारे आज के नेता उत्तराखंड के आर्थिक संरचना को “शराबशास्त्र” से चलना बखूभी जानते हैं | पर यह तो निश्चित है के उत्तराखंड अपने जवानियों को कुंठित करके उन्हें पशु बना देने पर आतुर है, चाणक्य बोलते हैं –
मांसभक्षै: सुरापानैर्मूखैंश्चाक्षरवर्जितै: ।
पशुभि: पुरुषाकारैर्भाराऽऽक्रान्ता च मेदिनी ।।
मांस खाने वाले, शराब पीने वाले, मूर्ख और निरक्षर मनुष्य रूपी पशुओं से यह पृथ्वी पीड़ित और दबी रहती है।
ऐसी ही हालत हमारी उत्तराखंड देवभूमि की भी हो जाने वाली है |